रविवार, 17 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई का अभी प्रारांभिक चरण ही लोगों के सामने आया था ...और इसमें जीत भी अन्ना को हासिल हुई थी ....लेकिन ये जीत भला उन राजनेताओं को कैसे पच सकती थी जो कई सालों से देश की एक सौ इक्कीस करोड जनता को बडी स्मार्ट तरीके से बेवकूफ बनाते आ रहे थे ....राजनेताओं का सिद्धांत है कि महापुरुषों को मानों मगर उनकी न मानों ....इससे कई फायदे है ...उनको मानने से उन लोगों को समर्थन मिलेगा जो उन्हे मानते हैं साथ ही वोट भी ....लेकिन अगर उनकी मानेंगें तो न भ्रष्टाचार कर पाऐंगे न ही सफेद कपडों में सज्जन पुरुष बनकर अय्याशी और न ही स्मार्ट तरीके से वादों के पिटारे के बल पर लोगों को बेवकूफ बना पाऐंगें....इसलिए उनको तो मानों मगर उनकी न मानों सबसे अच्छा सिंद्दांत है ....शायद यही वजह है कि गांधी को अपना आदर्श मानने वाली और उनकी नाम को अब तक भुना रही कांग्रेस सरकार के नेता मंत्री अन्ना के अनशन खत्म होते ही इस तरह से अन्ना पर उनके आदोंलन पर बयान करने लगे जैसे वो इसी ताक में थे कि किस तर ह से जल्द से जल्द ये आंदोलन खत्म हो और वो अपने बयानों से अन्ना को धराशायी कर दें.....राजनेताओं को इस बात का पता है कि जनता कब किस तरह का रिएक्शन करती है ....क्योंकि वो कई सालों से इस जनता को बेवकूफ बना रहे है तो अन्ना और दूसरे लोगों से कहीं ज्यादा नेता ये समझते है कि जनता कब क्या कर सकती है ....उन्हे पता है कि देश की जनता कुंभकर्ण की तरह है कि अगर वो जाग गई तो इस तरह से हाथ में सोंटा लेकर दौडाएगी कि उनकी लाल लगोंटा तक नही बचेगा....इसलिए जब आंदोलन शुरु हुआ तो इसे इतना गंभीर नही लिया गया लेकिन जब जनता जाग गई और अन्ना को अपार समर्थन मिला तो नेताओं को भी ऐसा लगा कि अब ये आदोंलन अन्ना का आदोलन नही बल्कि जनआंदोलन बनता जा रहा है ...इसलिए तब किसी भी नेता ने अपनी पैनी जुबान नही खोली और न ही सरकार ने इस आंदोलन पर ज्यादा कुछ नसीहत दी हालांकि अंदर ही अंदर रणनीति बनती रही और सरकार ने सिर्फ चार दिन में ही वो सारी मांग माने ली जो आंदोलनकारियों ने की थी ......शायद नेता भी जानते थे कि जैसे ही आंदोलन खत्म होगा जनता अपने फिर अपने उसी पुराने ढर्रे में आ जाएगी ...और वो अपना पुराना काम शुरु कर देंगें....और उन्होने किया भी वही ....आंदोलन खत्म होते ही सभी ओर से बयानों की बौछार आने लगी ....और सभी नेताओं का यही मानना था कि अन्ना ने जो किया वो सही नही था ....कुछ लोग सीधे कह रहे थे तो कुछ लोग अपना वोट बैंक बचाकर .......कपिल सिब्बल ने जहां जनलोक पाल विधेयक को ही नकार दिया वही दूध के धुले आडवाडी ने कहा कि सभी नेता ऐसे नही होते है ....हां आडवाडी आप तो बिल्कुल नही क्योंकि नेताओं के पास एक हथियार सबसे कारगर है कि अगर कोई मामला सामने आ जाए तो कह दो ये विपक्षी पार्टी की साजिश है और ये उन्हे बदनाम करने के लिए किया जा रहा है ....शायद आपका तहलका वाले मामले में भी यही कहना होगा......

सोमवार, 7 जून 2010


अधूरापन
किसी के घर को दीवारें भी खुशियों से नहायी है
किसी ने आसुओं से दोस्ती अपनी निभायी है
कोई महलों में बैठा रात दिन सपने संजोता है
किसी का लुट गया सब कुछ किसी की मुंह दिखाई है

रविवार, 6 जून 2010

परिवर्तन

फासलों की खडी दीवार को अब गिरा दो

बिना उनके भी रोशन है चिरागों को बता दो

किसी भी लीक पर चलना बहुत अब तक हुआ

विरासत में मिले इतिहास को अब कुछ नया दो

सोमवार, 31 मई 2010

नक्सली अब आम आदमी को निशाना बना रहे है ....लेकिन सवाल है आखिर क्यों ....आखिर नक्सली चाहते क्या है ....क्या उनका जो तरीका है वो जायज है ...अगर वो सरकार की नीतियों से खुश नही है तो इसकी कीमत आम आदमी की जान लेकर क्या वो इसकी कीमत आम आदमी से वसूल करेंगें... क्या उन्होने जो तरीका अपना रखा है उससे वो अपने मकसद को पा लेगें ....आखिर कहां पर रुकेगी ये जंग ....नक्सली जो कि सरकार की नीतियों की खिलाफत करके अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते है ....ये लग रहा है उनके तरीके को देखकर ....नक्सलबाडी से कानू सान्याल का चलाया ये आंदोलन अब अपने उद्देश्य से भी भटक चुका है और इसको जो लोग चला रहे है उनका भी कोई मकसद नही है ....क्योंकि ये लडाई शुरु हुई थी आम आदमी के लिए ....लेकिन आज आम आदमी को ही इसमें निशाना बनाया जा रहा है ....मिदनापुर में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में हादसा करके आखिर नक्सलियों ने क्या हासिल कर लिया ....क्या नक्सली सिर्फ अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए आम आदमी का खून पर खून किये जा रहे है ....शायद जिस तरह से उन्होने ताडमेटला और मिदनापुर में घिनौना काम किया है उससे तो यही लगता है ....तो क्या सिर्फ वो यही चाहते है कि सरकार को इस बात का अहसास हो जाए कि वो इतने ताकतवर है कि वो कहीं भी किसी भी आम आदमी को निशाना बना सकते है ....शायद ये ताकत नही बल्कि ये कायरता है क्योंकि आम आदमी तो वैसे भी बेचारे बिना मरे ही मरा हुआ है ....देश में प्याप्त भ्रष्टाचार महगाई और कहीं भी बिना पहुंच के सुनवाई न होना ...ऐसे बहुत से कारण है जो ये बताते है कि आम आदमी तो जिंदा रहकर भी मरा जा रहा है ....अगर उसके इस समस्या का समाधान होता तो तब तो नक्सली आदोंलन को कहा जाता कि ये आंदोलन आम आदमी के हक के लिए लडा जा रहा है ....लेकिन यहां उसके हक की लडाई नही बल्कि उससे ही जीने का हक छीना जा रहा है ....नक्सलियों की घोर दुश्मनी होती है सुरक्षाबलों से और नक्सलियों ने अब तक इन्ही लोगों को निशाना बनाया है ...लेकिन वो नक्सली नेता जो इस बात का राग अलापते है कि गरीब लोगों को शोषण हो रहा है और अमीर लोग और अमीर बनते जा रहे है ...बेगुनाहों को मारकर खुद पर फक्र करने वाले नक्सलियों को क्या ये पता नही है कि जो जवान सीआरपीएफ पुलिस पैरामिलिट्ररी फोर्स या फिर किसी भी तरह की सुरक्षाबल की नौकरी करते है ...वो किसी अमीर घराने के नही बल्कि किसी गांव के या तो गरीब घराने से होते है या फिर मिडिल क्लास से ....मैं उन जवानों की बात कर रहा हूं जो सिपाही होते है ....और अगर कहीं पर मारे जाते है तो सबसे ज्यादा सिपाही ही मारे जाते है ....क्योंकि उनमें कुछ कर गुजरने का सपना होता है ....ये जवान गांव में रहते है ...किसानी करते है ...साथ ही पढाई भी करते है जब हाईस्कूल या फिर इंटर हो जाते है तो इनका ख्वाब होता है कि इनकी नौकरी लग जाए ....और इनके लिए एक ही सरकारी नौकरी बचती है सुरक्षाबल की ....मां बाप भी चाहते है कि अगर बेटे की सरकारी नौकरी लग जाएगी ...तो गांव में किसी से कहने में ये फक्र होगा कि उनका बेटा भी सरकारी मुलाजिम है ....इसके लिए घर वाले क्या नही करते ....यहां तक की घर में जो जानवरों का दूध होता है जिससे कई घरों में खर्चा भी चलता है उससे दूधिये को न देकर बेटे को पिलाते है ....जिससे वो खूब हट्टा कट्टा हो जाए ....उसे रोजाना सुबह दौडाते है ...खुद नही खाते है लेकिन बेटे का खाने पीने का ध्यान रखते है ...क्योंकि सुरक्षाबल की नौकरी के लिए हट्टा कट्टा शरीर भी होना चाहिए ....अगर बेटा भर्ती देखने जाता है तो उसके खर्चे के लिए दूसरे से उधार लेकर उसे खर्चा पानी दिया जाता है ...इस उम्मीद से हो सकता है इस बार भर्ती में उसका सेलेक्शन हो जाए ....इतना ही नही भ्रष्टाचार की जडें तो हर जगह है ....इसलिए इस बात के लिए अगर कहीं पैसे की जरुरत पडे तो पैसे की कमी न हो ....खेत बेंचकर पैसे की जुगाड भी करते है ....क्योंकि अब जो वास्तव में किसान है उसके पास पैसे रहते ही नही क्योंकि उसकी पूरी खेती ही उधार पर होती है और जैसे ही अनाज घऱ पर आता है बेंचकर वो सबका हिसाब चुका देता है और फिर से ठन ठन गोपाल हो जाता है ....बेटे की नौकरी के लिए सब कुछ करते है और सोंचते है किसी तरह बेटे की नौकरी लग जाए बाद में तो सब ठीक ही हो जाएगा कितनी बडी उम्मीद होती है ...है बेटे से ....क्या नक्सली उस उम्मीद को समझते है ....और अगर नही समझते है तो वो आम आदमी की लडाई नही बल्कि अपने स्वार्थ की जंग लड रहे है ....और अगर समझते है तो फिर वो कैसे इस नरसंहार को कर रहे है ....क्या उन्हे नही पता कि जिस एक उम्मीद के चारों और कई जिंदगियां ये सोंचकर चक्कर लगाती रहती है कि उस उम्मीद से हर समस्या हल हो जाएगी और उनकी जिंदगी आराम से कट जाएगी जब वो उम्मीद ही खत्म हो जाती है तो उन लोगों पर क्या गुजरती होगी जो उम्मीद के चारों ओर खुद के अस्तित्व को तलाश कर रहे थे ....ये कोई और बल्कि उन्ही तरह के लोग है .....क्या होता होगा उस बहन का जो अपनी सहेलियों को बडी फक्र से ये बताती है कि उसका भाई सेना में है और वो जब छु्ट्टी में आएगा तो उसके लिए सलवार सूट लाएगा ....कैसे संभालती होगी वो मां अपने दिल को जिससे उसका बेटा ये कहकर गया था कि मां तुम्हारी आंखे को अब चश्मा की जरुरत है ...इस बार मैं जब वापस आउंगा तो तुम्हारी आंखे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाउंगा ...कितना दर्द होता होगा उस उससे ये कहकर गया था कि पिताजी जब इस बार आउंगा तो आपके लिए एक बेंत लाउंगा.....शायद ये सारी बातें ये नक्सली न समझेंगें क्योंकि ये तो सिर्फ आमआदमी और गरीब आदमी का शोषण करके अपना स्वार्थ सिद् कर रहे है ....शायद यही वजह है कि इनके लिये न तो आम आदमी का खून कोई मायने रखता है और न ही ये बात किसी को कितना दर्द होता है ....अब जवान करें तो क्या करें एक तरफ सरकार तो दुसरी तरफ नक्सली इन दोनों के बीच घर के लोगों की उम्मीदें जो उसकी सासों पर भारी पडती है शायद यही वजह है कि वो चाहता है कि उसके घऱ वालों को कोई ताना न दे कि उनका बेटा गद्दार था .....अरे नक्सलियों जरा सोचों उस दर्द को जिस दर्द की बात तो तुम लोग करते हो ....लेकिन उसे महसूस नही करते ....क्योंकि सच तो बस इतना हैकि तुम आम आदमी के हक की लडाई नही बल्कि अपने स्वार्थ की लडाई लड रहे हो .......

रविवार, 30 मई 2010


बडा अजीब लगता है जब लोग इतने निराश हो जाते है कि वो अपने आप पर से विश्वास खो देते है ....वो इस अहसास को ही खो देते है जिस अहसास से जिंदगी की बुनियाद बनी होती है ....बहुत सारे लोगों से मेरा मिलना होता है कि क्योंकि पत्रकार का काम ही बकवास और लोगों से मिलना होता है कुछ लोगों से मिलता हूं और जब पूछता हूं तो बोलते है ठीक हूं अरे भाई ठीक हो तो अच्छे क्यों नही हो कुछ भी ऐसा कारण नही होता है जिससे जिंदगी की रपटीली राह पर चलना कठिन हो लेकिन इसके बावजूद लोगों जिंदगी के प्रति बडा हताश निराश देखता हूं ...दुनिया में हमेशा कुछ भी ऐसा नही होता जो हो न सके ....सब कुछ हो सकता है लेकिन मजबूरी कि हम करना नही चाहते....जिंदगी में निराशा हमें इसलिए होती है क्योंकि हम सोचते है कि जो हम सोचते है बस वही सही जबकि ऐसा कई बार ऐसा नही होता है ....जिंदगी कई रंगो से बनी होती है और उसके हर रंग का अपना एक महत्व होता है ...इसलिए हमें चाहिए कि जिंदगी के हर रंग का मजा ले ....अगर खुशी के आसुओं में एक अजीब सा अहसास होता है .... तो गम के आसुओं में भी कई बार फक्र महसूस होता है ....जब किसी मां का जवान बेटा देश के लिए अपने प्राण निछावर करता है ....और लोग उसकी जयजयकार करते है तो मां के आखों में उसे खोने का गम होता है लेकिन इसके बावजूद उसे अपने खून पर फक्र होता है....इसलिए जिंदगी से शिकवा की जगह उसकी रफ्तार और उसकी चाल का मजा लेना चाहिए ....जीत तो तब है जब आप ये कह दे कि हम भी देखतें है कि जिंदगी अपने किन किन रंगो से हमे रुबरु कराती है ...आप माने या न माने लेकिन हकीकत ये है कि जिंदगी के जितने रंगों से गुजर कर आप आगें बढेगें आप उतने ही निखरे और मजबूत बनेगें ....इंद्रधनुष ऐसे ही लोगों को नही लुभाता बल्कि वो कई रंगों से मिलकर बना होता है ....जब वो आकाश में चमकता है तो लोगों को बरबस अपनी और खींचता है ....हर रंग का अपना महत्व होता है ऐसे ही जिंदगी भी कई परिस्थितियों से मिलकर बनी होती है और हर परिस्थिति की अपनी एक अलग कहानी होती है ....उपन्यास हमेशा कहानी से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ...क्योंकि उसमें कई कहानियां किसी एक व्यक्ति से ही जुडी होती है ....शायद यही वजह है कि वो अपने आपको कहानी से कहीं ज्यादा अच्छी तरह से व्यक्त करता है ॥अगर आप जिदगीं के हर रंग का मजा लेते हुए आगें बढेगे निश्चित ही आप भी इंद्रधनुष की तरह चमकेंगे...लेकिन जिंदगी से कभी शिकवा मत करिये ....कई लोग परिस्थितियों के लिए भगवान को दोष देने लगते है मैं पूछता हूं ईश्वर ने हमें शरीर से अच्छा इस संसार में भेजा न तो हमें अंधा बनाया न हमें लगंडा बनाया न हमें ऐसा बनाया कि हम बुद्दिहीन है फिर हम क्यों उस ईश्वर को दोष देते है ....किसी ने कहा है कि आदमी जितने कष्टों से निकलकर आगें निकलता है वो उतना ही महान बनता है इसलिए जिंदगी से शिकवा नही बल्कि उसके स्वागत करो उससे कहों कि ऐ जिंदगी हम तेरे हर रंग को देखना चाहते है जिससे मरते वक्त ये खुद से गिला न रह जाए कि हमने ये नही देखा ......

सोमवार, 24 मई 2010


आज हर कोई प्यार का भूखा है ....सभी को प्यार चाहिए और असली प्यार चाहिए मतलब दिल से चाहने वाला ....हर कोई चाहता है कि उसे जो चाहे वो बस उसे ही चाहे और किसी को नही ये बात और है हर व्यक्ति ऐसा चाहने वाला अपने आपसे ऐसी उम्मीद नही ऱखता .....वो अपने लिए फार्मूला रखता है कोई भी दुखियारी उसके दर से खाली न जाए अगर किसी ने प्यार से दो बातें कर ली तो समझो हुजूर लग गये अपने काम में और हाथ आए इस मौके को वो किसी भी तरह से भुनाना चाहते है ....वर्तमान में प्यार के बाजार में भावनाओं की कद्र काफी पहले खत्म हो चुकी थी ....और अहसासों का दायरा भी सिमट गया है अब अगर वर्तमान में कुछ बचा है तो वो है ...उत्तेजना ॥और प्यार का सारा खेल इसी उत्तेजना पर चल रहा है ....अब चूकि उत्तेजना तो अस्थाई होती है इसलिए एक दिन प्यार होता है और दूसरे दिन दिल के खांचे में कोई और फिट हो जाता है। मतलब जितनी देर उत्तेजना उतनी देर प्यार उसके बाद फिर से खेल शुरु हो जाता है प्यार के खेल का ....एक बात गौर करने वाली है ....ज्यादातर हमारे सामने ऐसे किस्से आ रहे है जिसमें कुआरी लडकियां या तो गर्भवती हो जाती है ...या फिर बलात्कार की शिकार हो जाती है ....ये उसी प्यार का ही एक हिस्सा है किस्सा ये भी सामने आता है कि लडके ने बहुत दिनों तक शादी का झांसा देकर लडकी का शारीरिक शोषण करता रहा बाद में उसने शादी करने से मना कर दिया ....ये भी आजकल के चलन में रहने वाले उत्तेजनात्मक प्यार का ही एक हिस्सा है ...लोग भले कहते हो कि प्यार कभी बदलता नही ....लेकिन आज जमाने के साथ प्यार की परिभाषा भी बदली है ...पहले जमाना था जब प्यार भावनाओं के इर्द गिर्द घूमता था लेकिन आज का प्यार कपडो के आसपास स्टैंण्डर्ड के आसपास आपकी खूबसूरती के आसपास घूमता है ....अगर बात करें तो लडकों को आजकल के लडकों को उस लडकी से उतनी ही जल्दी और उतना ही ज्यादा प्यार होता है जितने वो लडकी कम कपडे में दिखती है ....अब प्यार के लिए सादगी और भावनाओं की कद्र करना नही जरुरी है बल्कि सेक्सी होना जरुरी है ....अगर लडकी सेक्सी नही है तो उससे कोई प्यार नही करने वाला और अगर वो सेक्सी है तो हर कोई प्यार करने को तैयार है ...अगर लडकियों की बात करें तो वो जमाना चला गया जब लडकियों को सिर्फ सच्चे दिल से प्यार करने वाला चाहिए होता था ...अगर आपके प्यास किसी लडकी को देने के लिए सच्चे दिल का प्यार है और ईमानदारी की खाने के लिए रोटी दाल है तो आप किसी भी लडकी से प्यार करने का इरादा बदल जाईए क्योंकि अब प्यार के लिए न सिर्फ आपका स्मार्ट होना जरुरी है बल्कि आपके पास गाडी बंगला और सोसाइटी में रुतबा भी होना जरुरी है इतना ही नही अगर आप किसी लडकी को रेस्टोरेंट में ले जाकर उसके साथ डिनर नही ले सकते उसे शॉपिंग नही करा सकते है तो प्यार आपके लिए इतिहास की चीज हो गई है क्योंकि प्यार का जो नया स्वरुप वो अब यही है ......ये किस्से भी इसी प्यार की तस्वीर पेश करते है ......मुलाकात हुई थोडी जान पहचान हुई कि प्यार हो गया ....प्यार हुआ नही कि सपने बनने लगे और इन सपनों में एक जो आम बात होती है वो होती है कभी न जुदा होनी की ....और उसके लिए फिर शुरुआत जिस्म और जान से एक होनी की .....और ऐसा करने के लिए बहुत जल्द ही स्थापित हो जाते है शारीरिक संबध .....शारीरिक संबध होने के बाद प्यार का परवान घटने लगता है......और फिर शुरु हो जाते है आरोप प्रत्यारोप के सिलसिले .....क्योंकि जब तक उत्तेजना थी तब प्यार का बुखार था जैसे ही उत्तेजना खत्म हुई प्यार का बुखार उतर जाता है.....मतलब अब प्यार की गारंटी उतनी ही देर की है जब तक उत्तेजना है ...लोग आजकल प्यार का पात्र का बनने के लिए अपने आपको सजाते है बडी बडी बातें बातें करते है और अपने आपको अट्रैक्टिव बनाने के लिए हर वो कुछ करते है जो किसी को उनकी तरफ अट्रैक्ट कर सके लेकिन किसी की तरफ अट्रैक्ट होना अलग बात है और किसी से प्यार होना अलग बात है आप अगर मल्लिका शेरावत की तरफ अट्रैक्ट होते है तो आपकी दूसरी भावना होगी लेकिन अगर आपको लता मंगेशकर अच्छी लगती है तो उनके लिए आपके जज्बात अलग होगे ......अब इतने तो आप भोले नही है किसी के लिए क्या जज्बात होंगे ये नही समझे ....ये ठीक है कि चहेता बनने के लिए आपका व्यक्तित्व अच्छा हो लेकिन जितना चहेता बनने के लिए आपके कार्य जरुरी है उतना आपका सजना संवारना नही और इसी की मिशाल पेश करते है सचिन तेंदुलकर लता मंगेशकर अमिताभ बच्चन और भी बहुत से लोग है जो इस तरह के है

सोमवार, 17 मई 2010


पहले मदनवाडा में नक्सलियों ने एस पी प्रदीप चौबे सहित ३५ जवानो को मौत के घाट उतार दिया....इसके बाद अभी सरकारी बयान की आंच ठंडी भी नही हुई थी कि फिर से नक्सलियों ने ये साबित कर दिया कि सरकार सिर्फ बातों के बतासे बनाती है न कि कारगर कारवाई यही वजह थी कि चिंतलनार में नक्सलियों ने देश का सबसे बडा हमला करते हुए ७८ जवानों को काल के गाल में पहुंचा दिया....इस हमले के बाद केंद्र सरकार को इस बात का अहसास हुआ छत्तीसगढ नक्सलियों से जूझ रहा है ...इसके बाद कई बयान आए चिंदबरम भी छत्तीसगढ आकर शहीदों के प्रति संवेदना जताई ...वही छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक बार फिर वही राग अलापते हुए सिर्फ ये कहकर अपने फर्ज से इति श्री कर ली कि नक्सली की ये कायराना हरकत है और इसे किसी भी कीमत पर नही बर्दास्त किया जाएगा ....लेकिन वही हुआ जिसका अंदेशा था नक्सलियों ने इतनी बडी घटना के बाद एक बार फिर से सरकार को ठेंगा दिखाते हए गादीरास में ब्लास्ट करके एक बस को उडा दिया ....और सरकार ने फिर वही रटा हुआ जवाब दोहराया कि अब रणनीति बदलने की जरुरत है ....इतना ही नही इस बार पुलिस जवानों के साथ नक्सलियों ने आम लोगों को भी निशाना बनाया ॥लेकिन सरकार सिर्फ रणनीति की बात करती रही और इस हवा को बल मिला कि अब हवाई हमले से ही नक्सलियों से निपटा जा सकता है ...मुख्यमंत्री से लेकर चिंदबरम को भी यही लगने लगा कि अब नक्सलियों के सामने कोई भी रणनीति काम नही कर रही है ....इसलिए अब केवल आखिरी विकल्प हवाई हमला है ....लेकिन मुख्यमंत्री और पी चिंदबरम ये भूल गए कि जो लोग छत्तीसगढ में नक्सली से निपटने के लिए तैनात है उन्हे इतना तक नही मालूम है कि नक्सलियों के कंमाडर कौन है और जो लोग नक्सली है वो कौन है ...खुफिया तंत्र इस हालत में है कि उसे पता ही नही चलता कि नक्सली कब हमला करने वाले है ....इतना ही नही जो सुरक्षा बल दंतेवाडा बस्तर सुकमा नारायणपुर पंखाजूर जैसे इलाके में तैनात है उन्हे ये नही मालूम कि आखिर नक्सली है कौन ....मतलब अगर नक्सली उनके सामने आ भी जाए तो वो आम आदमी और नक्सली में अंतर कर पाने में असमर्थ है ....ऐसे में किस पर हवाई हमला किया जाएगा निर्दोष लोगों पर जो पहले से ही सरकार और नक्सली के बीच पिस रहे है नक्सलियों के साथ रहे तो सरकार पीसती है और सरकार का समर्थन करें तो नक्सली मौत के घाट उतारते है .....अब बेचारे आम आदमी जाए तो कहां जाए ......नक्सलियों से निपटने के लिए तरह तरह की बातें हो रही है लेकिन ये बात अभी तक नही हुई कि आखिर ये नक्सलवाद पनपा क्यों .....ये सही है कि आज नक्सलवाद जिस उद्देश्य को लेकर पनपा था वो कही पीछे छूट गया है लेकिन क्या उस समस्या का खात्मा हो पाया है जिसकी वजह से ये वाद पनपा था ....शायद नही ...जिन आदिवासियों के लिए ये राज्य बना था उन्ही बस्तर के आदिवासियों को ये नही मालूम है कि आखिर बीपीएल कार्ड होता क्या है .....जबकि छत्तीसगढ सरकार ये ढिढोंरा पीट रही है कि वो हर गरीब की भूख मिटाने के लिए एक रुपये में चावल मुहैय्या करा रही है....इतना ही नही लोगों को उन राजनेताओं के नाम नही मालूम है जो इस बात में कहने से पीछे नही हटते कि उनका अपना जनाधार है......वहां के लोगों की अपनी दुनिया है जिसमें न तो चकाचौंध है और न ही सरकार की योजनाओं का लाभ ....किसी तरह वो अपने पेट की भूख मिटाते है और अपनी गरीबी में ही मस्त रहते है.....आज सरकार नक्सलियों से क्यों नही निपट पा रही है क्योंकि वो इन गरीबों के मानसिकता में अपनी जगह नही बना पाई उन्हे नही पता है कि सरकार क्या है शायद यही वजह है कि नक्सली इन सीधे साधे लोगों को बरगलाकर सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करते है .....ये बात तो सिद्द हो गई है कि नक्सलवाद अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है....और ये भी साफ है कि नक्सलवाद को जो लोग हैंडल कर रहे है वो कहीं न कही अपना मतलब साधने के लिए सीधे साधे आदिवासियों को बरगलाकर इस आंधी में झोंक रहे है क्योंकि सुरक्षाबल की गोली का निशाना ये बडे नेता नही बल्कि वो युवा आदिवासी होते है जिन्हे ये भी नही मालूम कि जो लडाई वो लड रहे है आखिर उसका उद्देश्य क्या है .....इसलिए अगर सरकार को ये लडाई जीतनी है तो वहां रहने वाली जनता का पहले विश्वास जीतना होगा तभी असली मायने में ये लडाई जीती जा सकेगी वरना हर हमले निर्दोष लोग ही मारे जाऐंगे क्योंकि नक्सलियों की कोई पहचान तो है नही इसलिये जो दोषी होगें वो आम आदमी बन जाऐंगे और जो बेकसूर होगे वो फिर से सुरक्षाबलों की गोली का निशाना बनेगें......